प्रबंधन >> एप्पल सक्सेस स्टोरी एप्पल सक्सेस स्टोरीप्रदीप ठाकुर
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एप्पल ने उतार-चढ़ाव दोनों ही बहुत देखे हैं। पर क्या है उनकी सफलता का असली राज?
एप्पल ‘संप्रदाय (कल्ट) ब्रांड’ माना जाता है। फोर्ब्स पत्रिका ने मई 2017 में 170 अरब डॉलर ब्रांड मूल्यांकन के साथ अपनी ‘विश्व की सबसे मूल्यवान 100 ब्रांड’ सूची में एप्पल को लगातार सातवें वर्ष भी पहले स्थान पर मजबूत बनाए रखा था। न केवल ब्रांड मूल्य में बल्कि 214.2 अरब डॉलर ब्रांड राजस्व के साथ एप्पल अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वियों गूगल (ब्रांड मूल्य 101.8 अरब डॉलर; ब्रांड राजस्व 80.5 अरब डॉलर), माइक्रोसॉफ्ट (ब्रांड मूल्य 87 अरब डॉलर; ब्रांड राजस्व 85.3 अरब डॉलर) व फेसबुक (ब्रांड मूल्य 73.5 अरब डॉलर; ब्रांड राजस्व 25.6 अरब डॉलर) से बहुत आगे चल रहा था।
किसी भी उत्पाद के लिए एप्पल जैसी उच्च स्तर की ब्रांड-निष्ठा (ब्रांड लॉयल्टी) असामान्य मानी जाती है। इसके उपयोगकर्ता किसी पंथ या संप्रदाय के भक्त सदस्यों की तरह एप्पल उत्पादों के प्रति गहरी निष्ठा को खुलेआम प्रदर्शित करते हैं। इसीलिए एप्पल को एक संप्रदाय-ब्रांड या कल्ट-ब्रांड कहा जाता है। एप्पल के प्रति उपयोगकर्ता की ब्रांड निष्ठा लगभग तीन दशक पुरानी है, जब 1984 में कंपनी ने अपने कर्मशील और दूरदर्शी युवा संस्थापक स्टीव जॉब्स की अगुवाई में क्रांतिकारी व्यक्तिगत कंप्यूटर (पर्सनल कंप्यूटर/पीसी) बाजार में उतारा था। उसके बाद से अनेक उपयोगी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, जैसे-मोबाइल फोन, आई-पैड आदि बनाकर ‘एप्पल’ ने एक तरह से इस बाजार में अपना एकाधिकार कर लिया।
छोटी सी शुरुआत करके विश्वपटल पर अपनी पहचान बनानेवाली कंपनी की ‘सक्सेस स्टोरी’ है यह पुस्तक।
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